सोमवार, 2 जुलाई 2012

हर बार


अक्षरों के 
प्रशासन को दोहराते
बीत जाती है उम्र 
जाने - अनजाने 
हम छुड़ा भी लेते अपने आप को 
कितनी सहजता से स्वीकार करते हैं 
समुद्र, आकाश के उमड़ते उफान 
कभी चिड़िया, कभी तितली बन 
रात और दिन बाँधते 
उस अनदेखे विस्तार को 
हर बार |

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