बुधवार, 9 जनवरी 2013

घडी भर स्वप्न

असंग और अलिप्त 
रहकर भी सदैव 
हमारे आसपास 
बहुत कुछ घटता 
मीलों दूर का पानी 
अमृत बीज - सा 
दिशाओं संग 
तुम्हारी कोख में गिरता है 

सौंधी सौंधी माटी की महक 
कजली आँखों में रसिजती है
कभी डबडबाकर इत्र की बूंद 
उन्ही पलकों में सिमटती भी 

मै अनवरत 
लहर दर लहर ही 
ओर ज्यादा पाने को 
अगली पिछली के हिसाबों में 
घडी भर स्वप्न अवसर बिना ही 
अपने अधूरेपन की रेखाओं को मिटाने में लगा रहता। 





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Amit Kalla

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