असंग और अलिप्त
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Amit Kalla
रहकर भी सदैव
हमारे आसपास
बहुत कुछ घटता
मीलों दूर का पानी
अमृत बीज - सा
दिशाओं संग
तुम्हारी कोख में गिरता है
सौंधी सौंधी माटी की महक
कजली आँखों में रसिजती है
कभी डबडबाकर इत्र की बूंद
उन्ही पलकों में सिमटती भी
मै अनवरत
लहर दर लहर ही
ओर ज्यादा पाने को
अगली पिछली के हिसाबों में
घडी भर स्वप्न अवसर बिना ही
अपने अधूरेपन की रेखाओं को मिटाने में लगा रहता।
Amit Kalla
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