डरता हूँ
सहानुभूतियों से
सुहाता नहीं अब
थाली में परोसा
स्नेहमय व्यवहार,
मठ को
त्यागते समय
आश्चर्य से
देखते रहे
परम्पराओं से बंधे
सन्यासी,
कहकर आया था उन्हें
कि
लौट जाओ
तुम सब अपनों में
मैं
शब्दों की
पगडण्डी
पकड़ता हूँ |
सहानुभूतियों से
सुहाता नहीं अब
थाली में परोसा
स्नेहमय व्यवहार,
मठ को
त्यागते समय
आश्चर्य से
देखते रहे
परम्पराओं से बंधे
सन्यासी,
कहकर आया था उन्हें
कि
लौट जाओ
तुम सब अपनों में
मैं
शब्दों की
पगडण्डी
पकड़ता हूँ |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें