AMIT KALLA
शुक्रवार, 9 सितंबर 2011
दूर की बात
बिना
उलट - पुलट
सूरज भी
धीरे से
स्वीकार लेता
वह सत्य
जिससे आँखे मूंद लेते हम
सहज सरोकार है
उसका
हमारा अनुराग तो
यदाकदा वाला ही
न रहने पर
कभी स्पष्ट नहीं रहने जैसा
स्वीकारना तो उसे
जैसे
दूर की बात |
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