धीरे - धीरे
ख़त्म होने लगी आकांशा
खुलने की ,
आवाजों के सहारे चलने
और अपनी ह़ी चीजों को पाने की,
धीरे - धीरे
ज्यादा करीब आने लगा हूँ
सीखने लगा रुकना,
पहाड़ से उतरती
नदी को देखना,
धीरे - धीरे
समाने लगा
किन्ही निर्धारित शब्दों में
जोगी होकर डूबते - डूबते
गृहस्थी के विश्वास को
पाने लगा हूँ |
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