अक्षरों के
प्रशासन को दोहराते
बीत जाती है उम्र
जाने - अनजाने
हम छुड़ा भी लेते अपने आप को
कितनी सहजता से स्वीकार करते हैं
समुद्र, आकाश के उमड़ते उफान
कभी चिड़िया, कभी तितली बन
रात और दिन बाँधते
उस अनदेखे विस्तार को
हर बार |
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