AMIT KALLA
शनिवार, 8 मार्च 2014
विश्वरूप
दोनों ही उस आकाश के
परपार हो जाते हैं
पलक शून्य दृष्टि संग
उसी एक लय में थिर,
यकायक
अपनी ही गति के विपरीत
सचेतन धारण करने लगते
कुंडलिनी के गर्भ में
उस विश्वरूप को।
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