दोनों ही उस आकाश के
परपार हो जाते हैं
पलक शून्य दृष्टि संग
उसी एक लय में थिर,
यकायक
अपनी ही गति के विपरीत
सचेतन धारण करने लगते
कुंडलिनी के गर्भ में
उस विश्वरूप को।
परपार हो जाते हैं
पलक शून्य दृष्टि संग
उसी एक लय में थिर,
यकायक
अपनी ही गति के विपरीत
सचेतन धारण करने लगते
कुंडलिनी के गर्भ में
उस विश्वरूप को।
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