मंगलवार, 2 दिसंबर 2014


ब्रश का हर एक स्ट्रोक बार बार मुझसे अपने वहाँ होने का अर्थ जानना चाहता है, रंग का कतरा कतरा अपनी असल पहचान पाने को आतुर दीखता, जी हाँ, मन निरंतर उनके द्वारा पूछे गए सवालों के जवाब ढूंढने में लगा रहता है, जहाँ मेरे अपने भी उनसे जुड़े कई कई जिज्ञासा भरे सवाल होते हैं। यह पूरी प्रक्रिया बेहद खूबसूरत गति को छू लेती है, जहाँ पीछे लौटने के बहाने अपनी यात्रा के अगले पड़ाव को पाना होता है, बहुत सारे न जाने को जानना और न माने को मानना होता है।निश्चित ही यह सरल नहीं, रंगों में आग भी छिपी होती है पूरी देह को जलाने लगते हैं, तड़पता हूँ मैं उस तपन से, रेत सा पल पल पकता हूँ। 

अमित कल्ला 

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