मौन 1
युगों-युगों से
शब्द छोटे रह जाते हैं
वस्तुतः
डूब ही जाते वे
मौन के उस महासागर में ।
मौन 2
समय के ठहर जाने पर
वाणी के अर्थ नहीं रह जाते
सिर्फ दृष्टि ही काफी होती जहाँ
असल पाने को
मन का अहंकार राख़-सा झर जाता
मौन के सुरमयी समागम में।
मौन 3
कोरी
गहरी चुप्पी नहीं
मौन ! मन को मानने का
अतीन्द्रियदर्शी सुकोमल अनुभव है।
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