सोमवार, 28 जुलाई 2014

मौन 1,2,3

मौन 1 

युगों-युगों से 
शब्द छोटे रह जाते हैं 
वस्तुतः 
डूब ही जाते वे 
मौन के उस महासागर में ।   


मौन 2 

समय के ठहर जाने पर 
वाणी के अर्थ नहीं रह जाते 
सिर्फ दृष्टि ही काफी होती जहाँ 
असल पाने को 
मन का अहंकार राख़-सा झर जाता 
मौन के सुरमयी समागम में। 

मौन 3 

कोरी 
गहरी चुप्पी नहीं 
मौन ! मन को मानने का 
अतीन्द्रियदर्शी सुकोमल अनुभव है। 

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