सूर्य कुण्ड पर
पहरा देते
गालव महाराज
पूछते हैं परिचय
हर रात
मिहिर भोज की
प्रतीक्षा में
वह सुगंध
तेली मंदिर के
चक्कर लगाती है
शिखर का आमलक
आकाश उल्कायें थामता
ठहरा देता
गोपाचल
घन मेघों को
अब तक जो
बंधे थे
पहुच से बहुत दूर
छू लेते हैं आज
बावन कलियों के छोर
इक निरंकार निर्गुणी
नाम ले
दाता बंदी छोड़
बुधवार, 18 नवंबर 2009
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें