बुधवार, 18 नवंबर 2009

निसर्ग ही मेरे लिए...

वह 
देखती है 
चाँद को 
चाँद 
कहीं अधिक 
रौशन हो जाता 
रिक्त में रंग सजाता है 
सफ़ेद अब 
सफ़ेद नहीं रह पाता 
उसकी उफ़ से 
दामन में स्याह भर
आकाश को 
गहराता है 
अनायास 
वह कहने लगती है    
निसर्ग ही मेरे लिए अब 
स्वर्ग है 

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