AMIT KALLA
सोमवार, 16 नवंबर 2009
निर्झर अक्षर
निर्झर
अक्षर
अनजानी
देह भिगो देते हैं ,
रोम - रोम फूटते
किन्ही
बिरवों से
बन - बनकर
दाता के
सबद निरंतर
1 टिप्पणी:
मनीष राज मासूम
16 नवंबर 2009 को 9:26 pm बजे
badhiya likhate hai mitra.darshnik andaz....hamari gali bhi aayen.manishmasoom.blogspot.com
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