नि:संदेह
स्थायी होता है
देह से अलग
वह बीज
मह:लोक से
सम्बन्ध हो जिसका
आकांक्षी
चेतन आकाश-लय की
कामना करता है
वह
नीलवर्णी
किसी स्वरयन्त्र-सा
प्रलय पार
नि:संदेह
सहस्रार की
उन खुली
पंखुरिओं तक
स्थायी होता है
देह से अलग
वह बीज
मह:लोक से
सम्बन्ध हो जिसका
आकांक्षी
चेतन आकाश-लय की
कामना करता है
वह
नीलवर्णी
किसी स्वरयन्त्र-सा
प्रलय पार
नि:संदेह
सहस्रार की
उन खुली
पंखुरिओं तक
"हं"
"हं"
"हं"
उचारता
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