AMIT KALLA
शुक्रवार, 29 अप्रैल 2011
लौट आये सब
लौट आये सब
सिवाय उन
तितलियों के
बैठ गयी जो
चट्टानों पर
छोटे-से
अवधूत संग
चंपा के
फूलों को
खिलने |
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ऊँची घास में
डर
स्पर्धा नहीं
ठंडी कविता
तुम्ही बताओ
"नदी" नहीं देखी
लौट आये सब
मृत्यु
कुछ भूलकर
स्थिर
एक दर्शन के लिए
ये गंगा है |
"गंगा" उसकी तो जय हो |
दूसरा कारागृह
सुना जो था
पुन: सोचो
ऋतुएँ नहीं
ग ह ना
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