अब तो
घटाना है
हो सके जितना,
जोड़ना बस कि नहीं
अयोग्य हूँ
इन विवास्थाओं में,
अनुपस्तिथ
अपने गंतव्य रहित
थोडा पीछे लौटकर ही
समझ सकता कोई
इन बातों को-
आगे जाने पर
निश्चित ही
वह भी
शिकार
अनुकरण का |
रविवार, 10 जुलाई 2011
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