AMIT KALLA
मंगलवार, 12 जुलाई 2011
चन्द्रवदनी कि ओर
तिनकों से
नदी ने प्रवाह को
रोकने कि बात पर
झटपट
कुछ गडगडाती
छायाएँ
ढक लेती मुझे
कौने - कौने से
हजारों पैर
चले आते
बे - परवाह
भूख के अंदाजों को
पीछे छोड़
चन्द्रवदनी कि ओर
जहाँ
धूप, बादल , हवा
चढाते - लुढ़कते हैं
आजीवन |
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