कहने भर ही नहीं है
वह जिज्ञासु
उसने
ऋत - अनऋत को
जाना है
वह गाढ़ी रात का
यात्री भी
गहन अँधेरे के पार
अपने ही पेरों पर
अपने ही घर में
जीव - जगत के
बीच खड़ा
यात्री ।
वह जिज्ञासु
उसने
ऋत - अनऋत को
जाना है
वह गाढ़ी रात का
यात्री भी
गहन अँधेरे के पार
अपने ही पेरों पर
अपने ही घर में
जीव - जगत के
बीच खड़ा
यात्री ।
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