देखो
ये रेत भी
पानी - सी
अपने प्रतिबिम्बों पर
इतराती है
एकाएक
अहंकार को कुचलकर
थाम लेती है हाथ
तभी तो
बादल झरते हैं
और
उठती है वह पत्ती
छूने को अपना आकाश ।
ये रेत भी
पानी - सी
अपने प्रतिबिम्बों पर
इतराती है
एकाएक
अहंकार को कुचलकर
थाम लेती है हाथ
तभी तो
बादल झरते हैं
और
उठती है वह पत्ती
छूने को अपना आकाश ।
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