ऐसा ही ! मानो,
हर रोज़ का अनुभव हो
असंभव नहीं जहाँ
इस शिकायती मन को मनना
कुछ देखना जो
उसे कहीं ज्यादा भीतर ले जाये
जानता हूँ
कितना कठिन होता है
लम्बी यात्राओं के बाद
पीछे को लौटना
हज़ार कायाओं की छापों से मुक्त होकर
देह का बीज और
बीज का कोष में समां जाना
कितना कठिन
उस सीखे को भुलाना
सत्य के करीब होने के भय को मिटा देना
और कभी
स्वयं को उंडेलकर
"उलटबाँसी" हो जाना
असंभव नहीं
कठिन जरुर होता है
संसार में
पदार्थ और मृत्यु के
अतिरिक्त भी कुछ देखना ।
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