गुरुवार, 5 मई 2011

रात उन्हें फिर शब्द बना देगी |

रोज़ रात में खोलता हूँ पोथी 
भोर होते ही शब्द चिड़िया बन 
उड़ जाते हैं इक-इक कर 
बस रह जाते कुछ 
टूटे बिखरे पंख 
सँजोता
बटोरता 
रखता हूँ, किसी अन्य खाली पोथी में 
आशा से 
कि
रात उन्हें फिर शब्द बना देगी |  

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