कितनी रिक्तता
सहसा अजन्मा रास्ता
खोजता है अपना मुकाम
सवालों से गुजरता
जिन्दगी भर का सच
सिमट जाता अपने बचपन में
छुपा नहीं पाता
अनागत प्रतिबिम्ब
अपने आप सिमट जाती हैं
रेखाएँ
यकायक टूट जाता
सचमुच
निर्लिप्त आवाजों के सहारे ही
गुजर जाता यह संसार |
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