गुरुवार, 5 मई 2011

शायद यही कला है

एक टेढ़ी रेखा  खीचने से पहले 
जानना होगा सागर में व्याप्त 
सीधी रेखा को

एक बिंदु कोरने से पहले 
देखना होगा आकाश में गतिमान
सूर्य को

कतरा-कतरा रंग लगाने से पहले 
माटी के रंगों में डुबोना होगा 
स्वयं को

एक चित्र देखने से पहले 
देखना होगा 
चित्त को |    

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