जानता है वह
जानता है वह
सब कुछ
तभी तो उसने बे - परवाह
परवानों जैसा
आँखों देखा
घूंट - सा पिया
समंदर - सा भीगा
और माटी - सा सूखा है
जानता है वह कि असल तो
न जानी गयी कतरा भर ख़ामोशी है
बरसों बरस की घुप अँधेरी रात बाद
उजाले सा गुजरता
उजाले सा गुजरता
जानता है वह ।
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