तुम्हारे भीतर
तुम्हारे भीतर
उन रंगों को सवरते देखा है उसने
तभी तो भरमाया - सा रहता है
आँखों को मूंद भी लिया चखकर
कुछ कल कल सुनाई भी देता है
जानता वह दर - असल
रूबरू कहना जो चाहता
उमड़ते घुमड़ते
इस जहान -ए अंत से पहले ।
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