AMIT KALLA
सोमवार, 6 फ़रवरी 2012
देह से देह को
अपने जन्म - सा
निरुपाधिक ध्यान में
इस ओर से
उस ओर तक
वह महापथिक
पानी से भरे
थालों पर कदम रख
पार हो जाता है
अक्षर पुष्प
धारण कर
गिटक जाता
शमशान की अग्नि
जानता
जीतता भी है
हर रोज़
अपनी ही
देह से देह को
हराकर ।
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मैं वचन देता हूँ
समेट लो अंजुरी
निरंतर अनुपलब्ध
हम शिव या शूकर
उन्नत होने की आकांक्षा में
देखो ज़रा !
कम जटिल
कुछ मत कहना
सोच विचार कर
अधूरा - सा प्रयोग
देह से देह को
कुछ संकेतों के साथ
मैं अपने "मैं" से
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