सोच विचार कर कहना
सतत
स्वयं स्वीकृत जो
अथवा
स्पर्शों के
अनुकरणों की
गरमाहट के पीछे
चलने जैसा कुछ
आज भी
मेरी स्मृतियों में है वह
अतृप्त सहभागी
अन्तराल
सीधे - सीधे
अपने ही अतीत के
शब्दों से तोड़ा गया हो जिसे ,
मैं साक्षी हूँ
तुम्हारे प्रयत्नों का
"अवस्थाओं के पार जाने के प्रयत्न"
अपने आप पाना है जिसे
और
कहना कुछ
सोच विचार कर भी
नामुमकिन ।
सतत
स्वयं स्वीकृत जो
अथवा
स्पर्शों के
अनुकरणों की
गरमाहट के पीछे
चलने जैसा कुछ
आज भी
मेरी स्मृतियों में है वह
अतृप्त सहभागी
अन्तराल
सीधे - सीधे
अपने ही अतीत के
शब्दों से तोड़ा गया हो जिसे ,
मैं साक्षी हूँ
तुम्हारे प्रयत्नों का
"अवस्थाओं के पार जाने के प्रयत्न"
अपने आप पाना है जिसे
और
कहना कुछ
सोच विचार कर भी
नामुमकिन ।
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