AMIT KALLA
गुरुवार, 16 फ़रवरी 2012
कुछ मत कहना
कुछ मत कहना
सिवाय
उस मौन के
अनुभूति भरा
कोने - कोने में
फैला
शतप्रतिशत
हमारी अपनी ही
बंद आँखों के
स्पर्श से
जागा
जाना हुआ
मौन !
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मैं वचन देता हूँ
समेट लो अंजुरी
निरंतर अनुपलब्ध
हम शिव या शूकर
उन्नत होने की आकांक्षा में
देखो ज़रा !
कम जटिल
कुछ मत कहना
सोच विचार कर
अधूरा - सा प्रयोग
देह से देह को
कुछ संकेतों के साथ
मैं अपने "मैं" से
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