सोमवार, 20 फ़रवरी 2012

हम शिव या शूकर

मजबूर
करते हम
एक - दूसरे को
गोल - गोल घूमने पर
बैल \ मनुष्य
संसार तो
बहती नदी है
कुआँ कभी नहीं
फिर
अनावश्यक
इतनी उलट - पलट क्यों
सही जाना आपने
भय ही हमारा
ब्रह्मास्त्र जो
निंदा - प्रशंसा
भूख - भोजन
सुख - दुख़ के 
इर्दगिर्द घूमता हुआ 
वस्तु - संबंधों को
पाकर खोने का भय 
भाई !
हम शिव हैं
या
शूकर
आज परमात्मा भी
आश्चर्यचकित है ।

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