AMIT KALLA
बुधवार, 21 नवंबर 2012
पार - अपार
बहते हैं रंग
दिशाएं भी
बहती हैं,
स्मृतियाँ
बूंद -बूंद
उन्ही - सी
किन्ही अल्पविरामों के
नितांत,
पार - अपार ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
Agreegators
मेरे बारे में
Amit Kalla
मेरा पूरा प्रोफ़ाइल देखें
फ़ॉलोअर
ब्लॉग आर्काइव
►
2017
(1)
►
मई
(1)
►
2016
(5)
►
मार्च
(2)
►
जनवरी
(3)
►
2015
(19)
►
दिसंबर
(1)
►
जुलाई
(3)
►
जून
(15)
►
2014
(15)
►
दिसंबर
(1)
►
सितंबर
(1)
►
जुलाई
(10)
►
जून
(2)
►
मार्च
(1)
►
2013
(9)
►
नवंबर
(7)
►
जनवरी
(2)
▼
2012
(50)
►
दिसंबर
(6)
▼
नवंबर
(13)
रंग भिगोकर तराते हमें
बनाकर उनकी
मनुष्य की सर्वोच्तम अवस्थाओं के नज़दीक
कुछ होता ऐसा
कुछ सयाने लोग
पार - अपार
कौन बड़ा ?
वे लोग
शायद विश्वास ही यह... विस्मय नहीं, इल्यूजन कदापि ...
कौन बड़ा ?
अपने होने की सार्थकता
भली - भली सी इक रात
शब्द बीज - सा
►
जुलाई
(2)
►
जून
(5)
►
मार्च
(10)
►
फ़रवरी
(13)
►
जनवरी
(1)
►
2011
(87)
►
सितंबर
(4)
►
अगस्त
(2)
►
जुलाई
(6)
►
जून
(15)
►
मई
(19)
►
अप्रैल
(18)
►
मार्च
(10)
►
फ़रवरी
(6)
►
जनवरी
(7)
►
2010
(4)
►
नवंबर
(4)
►
2009
(126)
►
नवंबर
(4)
►
अक्तूबर
(20)
►
सितंबर
(71)
►
अगस्त
(21)
►
जून
(1)
►
मई
(1)
►
अप्रैल
(8)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें