क्या सब कुछ निजी होता है,
कुछ होता ऐसा भी,
जो सब का हो
हवा सबके लिए होती है,
कुदरत का पानी, रौशनी सूरज की, गहरी रात के तारे
सुख और दुःख
कितना अच्छा होता
अगर खेत सब के होते, अनाज़ से रोटी और मिलता हर हाथ को काम
गाँव के चरागाह और पुरखों के ज्ञान - सा सबका
सवेरा
होती है जैसे सबकी
शामलात
दुनिया शामलात होती तो
क्या होता
नहीं होता बहुत कुछ
निश्चित ही इतिहास नहीं
इतिहास तो कभी नहीं |
प्रियवर,
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