AMIT KALLA
शुक्रवार, 10 जून 2011
मग्न शालिग्राम में
किसी ने पूछा
उससे की
आप कहाँ के हैं
वह निःशब्द
घोड़े से उतरकर
बैठ गया
खेजडे वृक्ष के नीचे
-समाधिस्थ-
कुछ छिपकर
निकल गए
कुछ लौट गए
बिना तर्क किये ही
कहते हैं
खोजते-खोजते वहाँ
एक ने पाया
सिंहासन
दूसरा था मग्न
शालिग्राम में |
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आकाश ही अन्तरिक्ष है
छूती नहीं उसे
धूप से पहले
तुमने अभी किया ही क्या है
असहकार
माटी से माटी
यूँ ही
ज्ञानवृद आषाढ
मग्न शालिग्राम में
समुद्र गोलाकार क्यों ?
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एक सवाल
कुछ रंग धूप में
अमृत बीज
ठगने दो उन्हें
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