AMIT KALLA
बुधवार, 29 जून 2011
आकाश ही अन्तरिक्ष है
इतना
आसान नहीं
बांधना
आकाश को
उसका नीलापन
इक भूल
क्या- आकाश ही
अन्तरिक्ष है
अन्तरिक्ष
हमारे अन्दर तक
खीचे आकाश का
उत्कर्ष जो
या फिर
सूर्य-रश्मियों से
उत्पन
कोई
ब्रह्माकार वृति केवल |
2 टिप्पणियां:
मनोज कुमार
29 जून 2011 को 9:36 am बजे
आकास एक शून्य और शून्य एक पूर्ण! यानी ... ब्रह्माकार वृति!!
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
5 जुलाई 2011 को 7:36 pm बजे
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
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आकाश ही अन्तरिक्ष है
छूती नहीं उसे
धूप से पहले
तुमने अभी किया ही क्या है
असहकार
माटी से माटी
यूँ ही
ज्ञानवृद आषाढ
मग्न शालिग्राम में
समुद्र गोलाकार क्यों ?
तीन काल का झूठ
एक सवाल
कुछ रंग धूप में
अमृत बीज
ठगने दो उन्हें
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आकास एक शून्य और शून्य एक पूर्ण! यानी ... ब्रह्माकार वृति!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएं