सोमवार, 17 अगस्त 2009

कृष्ण और शुक्ल के मध्य

कृष्ण और शुक्ल
के मध्य
सुझाता
श्रुतज्ञान,

कहाँ
मन मछली गंतव्य
कहाँ
अलबेला ऋतुफल

देखो
अर्ध्य चढाते उन देवताओं को,
भौमश्ववीनि योग में
तरने - तारने को तैयार

दिशाएं शिलाओं पर
सुस्ताती
देहमुक्त महाकाव्य की
उपासनाओं से थकी,
समुच्य का विधान दोहराती है

अभिमान मत करना तुम
सिद्धवस्तु,
जमातों की जमात,
नेत्रों में किरणों के पुंज भर
चढ़ते आकाश पर रहना

हज़ार- हज़ार
सागर की आयु वाले
तुम ही स्कन्द
तुम ही इन्द्र
अग्नि , आकाश,
काल ,यम्,
अमृत
तुम ही हुत,
अथर्व , दत्तरूप,

गरजो
गरजो
रुद्र... बन तुम

कृष्ण और शुक्ल के मध्य
जहाँ
सुझाता कोई
इक और
श्रुतज्ञान ।

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