शुक्रवार, 28 अगस्त 2009

यह सत्य नहीं , वह सत्य नही

यह सत्य नही
वह सत्य नही
कैसा अंतर्निर्हित
संभाव्य भेद

विलंबित से द्रुत तक
अस्थायी स्थिति,
अतीत की दृष्टी में
तन्मात्रों का संयोग,


नैसर्गिक नियमों के पार
ठोस विश्वास सा
शब्द संयोजन ,
आर - पार के
अर्थों
का
संतुलन ,

स्वभाव से मुक्त
लय जहाँ
प्रलय है
नियमों के पार
कैसी मुक्ति के उपाय की चर्चा

भवाय , हराय , मृडाय
संग संग
भवतु भव
शिवाय
शिवतराय ।

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