रविवार, 30 अगस्त 2009

आधे से आधा चुन लेता

आधे
से
आधा
चुन लेता

अपने आप
पानी सा
सब पर प्रकट होता है

चाक चढा समय
उस भूले दृश्य को
गंतव्य की
साझेदारी देता ,
पैने - पैने शब्दों की
विसर्जित मात्राओं
के साथ
अगली कडियाँ जोड़
फिर
दोहराता
तराशने वाला
तिलिस्मी हिसाब ,

अधिकांश
सिर्फ
आभास में
रख देते

कोई
आधे
से
आधा
चुन लेता

1 टिप्पणी:

  1. bhai amit,
    registan par aapki kavitayen achchhi lai. aaj pahli baar aapka blog kholkar dekha. ise detail main dekhna chaunga. badhai. aake kala paks ki to thodi jankaari hai
    farooq.afridy@gmail.com

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