मंगलवार, 25 अगस्त 2009

खोजता पीड पुराणी

खोजता
पीड पुराणी,
माथा - पच्ची कर
कोई न कोई
वैकुंठ की यात्रा कर आता है

सिलखड़ी पर कोर देता
मन्त्रयोग ,
पंच से पंच का तात्पर्य ,
सिद्धांतो के संदेहों से पार
बाटकर सुनहरे बीज
दत्तचित्त हो
अंग और अंगी का
भेद बताता है

कौन बडभागी
ब्रह्मज्ञान की बात करता ,
गुदगुदाता
ज्वारभाटों को ,
विरह के बाणों को
नयनों में समा

आकाश पर मेघ
पृथ्वी पर जल
रहँट पर कौतुहल
बिखेर देता

अखंड ध्यान लयलीन
अपने ही साहिब मै
विख्यात होता है
प्रतिषण
कोई न कोई
खोजता है
पीड़ पुराणी ।

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