रविवार, 30 अगस्त 2009

निर्धारित निर्वासन

स्मृतियों की
खड़खड़ाहटों के पार
बूंद - बूंद
संवित विकल्प

कैसा वह
निर्धारित निर्वासन
स्वप्न से स्वप्न ,
काया से काया ,
भव से भव

एकाएक
मानों
किसी
टूटते तारे का पीछा करती
रेखा की पकड ।

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