विलीन
होना
बड़ी साधना जैसा
क्या है
सामर्थ्य
प्रयाग बनाने का
या फिर
हिचकिचाहट
मृत्यु नहीं
पुनर्जीवन
कितना कुछ होता विलीन
इर्द-गिर्द तुम्हारे
नदी
अरे! वह तो
महायोगिनी है |
अचरज की बात नहीं
स्वप्नत प्रतीकों में
गोते लगाना
जीवित हूँ
अब तक,
अच्छा ही है
निंदा-स्तुति में
उदासीन बने रहना
"अहंभाव में
डूबकर
मरने से" |
तुम
राजा हो
तुम ही करो चिंता
सोचते रहो
झुण्ड में बैठकर
-कि लोग क्या कहेंगे
मै
गोद में
हिमालय की
संचयों से
परे
अपनी ही
भावावस्था में
लीन |
ध्यान की बात
ध्यान से कही जाये
ऐसा कतई
जरुरी नहीं
वह
फूल की तरह है
बालों में सजने वाले
फूल की
तरह |
अपेक्षाएँ
कभी नहीं रह पाती
अनुपात में
उनका
संक्षेप होना ही
समाधि है
मेरे
पास
धुंधले
दृश्यों के सिवा
कुछ नहीं
हाँ
जगत का अंतहीन
आविर्भाव
और कुछ
फलती-फूलती
तीर्थयात्राएँ
केवल
सूर्य
पिघलकर
पहाड़ का
आदित
आदित वह
सूर्य ही
या
स्वर्णिम चोटी
पहाड़ की
कितना
सुख
लौटने का
वैराग्य से
श्रृंगार की ओर
मशान से
वृन्दावन जितना
लेकिन जब
दोनों
दीखे एक -से
तब क्या
अंतिम
अवस्था तक
उन
शब्दार्थो के साथ
तुलना
हाँ
बाँट लो
तुम
सुख - दुःख
मैं इन
अवतारों के बीच
अनाड़ी ही सही
मै
पहाड़
अगले
सात जन्मों तक
तपस्वी पहाड़
उम्र के पुर्वार्ध से ही
रौशनी
अंधेरों के पार
अमुक्त
प्रतीक्षारत
जागता