ऋत के रंग
ऋत ही इस सृष्टि कि असल सनातन लय है। उस सजीव सत्य का पर्यायवाची, जिसके होने के अपने उद्देश्य औरनिर्धारित आधार हैँ, यही वह महत्तर तत्व है जिसके कारण तमाम चेतन - अचेतन धाराओं के बीच निर्वर्तित समभाव सुनिश्चित है। यक़ीनन ऋत एक ऐसे सामञ्जस्य कि चदरिया है जिसमे निसर्ग का अंश- अंश तानेबाने - सा रचाबुना है।उसकी अटल धुरी के सहारे हि यह समस्त भव और उसका स्वभाव गतिमान है।
हज़ारों हज़ार बरसों से हम ऐसे हि ऋत की उपासना करते आये हैं। ऋगवेद, उपनिषद तथा पुराणोँ में जिसकि संवित संज्ञाएँसम्मिलित हैँ, उस "ऋतम्" शब्द की वास्तविक अनुगूँज इस सम्पूर्ण सत्ता पर कही गयी सुन्दर कविता - सी मालूम पड़तीहै। एक तरफ ऋत को जहाँ सत्य कहा गया है तो वहीँ सत्य को जीवन का अमूल्य
तत्व, वस्तुतः ऋत अनेक अर्थोंवाली अभिव्यक्त जीवन रचना है जिसमें कितना कुछ परत दर परत
अन्तर्निहित है।
ऋत के अपने रंग हैं और अपना संगीत भी, जिसके दोहरे अर्थ कई - कई स्तरों पर स्वयं को प्रकट कर उच्चतर संवाद रचतेदीखते हैं। उसके अनन्य आयामों का उल्लेख किया जाना बहुत कठिन है लेकिन सहृदयी अनुभूति अत्यन्त सहज, उसका सुकोमल स्पर्ष सहसा हि उसकी दिव्य उपस्थिती का प्रमाण है। ऋत के परिकर में
मानो पूरा का पूरा जगत चलायमान हैऔर हम मनुष्य भी उसकी इस गति के सूक्ष्म अंश भर हैँ, वास्तव में उसेपाना अथवा उसमे समाना अपने आप में एकविशिष्ठ अवस्था की तरफ संकेत है जहाँ उस अनादि लय के
साथ अभिन्न संगत होना किसी अलौकिक अनुभव से कमनहीं, ये सब अनुभूतियों की बात है प्रत्यक्षानुभूतियों के भी आगे की बात।
देश - काल भी इसी ऋत के अधीन है, वे भी उसके संग समन्वय की संगत करते नज़र आते हैं, हर क्षण अपने आप कोप्रासंगिक नवीनता से भरकर सजीवता से उस सर्वोच्य महापथ की ओर आशा भरी निगाहों से देखते हैं,जिसका अनुक्रमसदैव शुभकारी है। परोक्ष-अपरोक्ष परिवर्तन उसी ऋत का सौन्दर्य है सही मायनों में वह उसका जन्मजात गुणधर्म जानपड़ता है।ज्ञात - अज्ञात, ज्ञेय - अज्ञेय, नित्य - अनित्य, सत्य - असत्य जैसे तमाम तत्व उसकी ही तीख़ी धार पर स्वयं को परखते हैं। शायद इसी के इर्दगिर्द वह प्राण, अथवा चेतना सरीखी शक्ति संचालित है या यूँ कहें की उनकी गति भी ऋत में निहित है।
अब सवाल यह उठता है कि ऋत का अधिष्ठा कौन है, आखिर उसके रंगों को कौन भरता है, कौन गढ़ता है उसकी काया,कितने ही देवता ऋत के नियंता होने का दावा भर करते है लेकिन वे भी उस लय का हिस्सा भर है,
ऋत को धारण करनासाक्षात ऋत होना है, सत्य होना है, सम होना है।
अमित कल्ला
जयपुर