स्मृतियों के आवाहन में
अचेतन मन
स्वयं ही
कितना कुछ रचता है
सपनों की अन्तर्वार्ता
यथासंभव अभिव्यक्ति का
माध्यम खोजती है
आश्चर्य और कृतज्ञता संग
वह जन्मजात
निरंतर
अपनी स्वाभाविक लय में
जाग्रति का स्वप्न
और स्वप्न की
सुषुप्ति होने के
पड़ाव को पाता है।