मंगलवार, 21 फ़रवरी 2012

मैं वचन देता हूँ

ऐसी बात नहीं
अधिकार है तुम्हारा
संभावनाओं भरा अधिकार ,
देर - सबेर
क्या तुम किसी
इन्द्रधनुष को जन्म दोगी
कुलाचें भरता
सेब के बागों में उतरा
इन्द्रधनुष
मैं वचन देता हूँ
हम बाईबल की
कहानी नहीं दौहरायेंगे
इस बार
कठिन होगा
हमारा बूढ़ा होना
और
असंभव होंगी
वह  अज्ञात
भविष्यवाणी भी ।

समेट लो अंजुरी

कहने को तुम्हारा
न देखा हुआ प्रतिबिम्ब है
क्या कभी
दौहराया उसे
कृत्रिम - सा होगा यह कहना
और दोहराना
करीब -करीब वैसा ही ,
बहरहाल
जो भी हो
तुम्हारा अपना यात्रा पथ है
धीरे से समेट लो
अंजुरी ,
खुदा का शुक्र करो
कि सूरज
छुपा आज
बादलों में ।

निरंतर अनुपलब्ध

आशाएं
भागाती हमें
निरंतर अनुपलब्ध
समझ के बढ़ने के साथ - साथ
और ज्यादा अतृप्त ,
मायावी बन्धनों के प्रतिबिम्ब
जिनका पीछा करने में
बूंद - बूंद समय
बर्फ़ - सा बीत जाता है
फिर तो बस
सदियों पुराने नीले आकाश में
क्षण भर ठहरे
पंखों का स्मरण ही ,
वहीँ हम ठीक से
अपनी आँखें बंद करना तो दूर
बहती हवाओं की तासिरें भी
नहीं जान पाते ,
करते हैं
सिर्फ और सिर्फ
ऐतिहासिक जवाबदेही की
पेचीदा
बातें केवल ।

सोमवार, 20 फ़रवरी 2012

हम शिव या शूकर

मजबूर
करते हम
एक - दूसरे को
गोल - गोल घूमने पर
बैल \ मनुष्य
संसार तो
बहती नदी है
कुआँ कभी नहीं
फिर
अनावश्यक
इतनी उलट - पलट क्यों
सही जाना आपने
भय ही हमारा
ब्रह्मास्त्र जो
निंदा - प्रशंसा
भूख - भोजन
सुख - दुख़ के 
इर्दगिर्द घूमता हुआ 
वस्तु - संबंधों को
पाकर खोने का भय 
भाई !
हम शिव हैं
या
शूकर
आज परमात्मा भी
आश्चर्यचकित है ।

उन्नत होने की आकांक्षा में

हमने देखा
सीख भी लिया
अपने आप - से
सचेत रहना।
अमरत्व की ओर
उन्नत होने की आकांक्षा में
किसी अन्योन्य क्रिया - सा
समय को काटना भी ।
धर्म के नाम पर
सदियों से दिए गए
कुछ काम
जैसा कि
सत् - असत का
लेनदेन ,
स्वयं को बिताने का ,
दुहने का पृथ्वी को ।
बातों ही बातों में
हमने सपने
स्तगित करना भी सीख लिया ।

गुरुवार, 16 फ़रवरी 2012

देखो ज़रा !

देखो !
देखो कि
कुछ देखना
बाकी न  रहे
ऐसा समझो कि 
जो निरंतर
दोनों छोरों तक
कई - कई अर्थों सा
वहीं का वहीं,
किसी मृत्यु रहस्य - सा
बारीक
अपने आप से
जाना जाने वाला
सपनों भरा
शाश्वत सत्य
देखो ज़रा !

कम जटिल

संसार में
बहुत कुछ है
जानने को
कम जटिल
कम आकस्मिक
चूके हुए
शिकारी
फिर एक नयी
कथाकथित छलांग लो
पहचान लो
इन हिरणों के रंग - ढंग
बे-फिक्र रहो
तुम्हारा जागना
निश्चित ही
आज
व्यापार नहीं है ।

कुछ मत कहना

कुछ मत कहना
सिवाय
उस मौन के
अनुभूति भरा
कोने - कोने में
फैला
शतप्रतिशत
हमारी अपनी ही
बंद आँखों के
स्पर्श से
जागा
जाना हुआ
मौन !

सोच विचार कर

सोच विचार कर कहना
सतत
स्वयं स्वीकृत जो
अथवा
स्पर्शों के
अनुकरणों की
गरमाहट के पीछे
चलने जैसा कुछ
आज भी
मेरी स्मृतियों में है वह
अतृप्त सहभागी
अन्तराल
सीधे - सीधे
अपने ही अतीत के
शब्दों से तोड़ा गया हो जिसे ,
मैं साक्षी हूँ
तुम्हारे प्रयत्नों का 
"अवस्थाओं के पार जाने के प्रयत्न"
अपने आप पाना है जिसे 
और
कहना कुछ
सोच विचार कर भी
नामुमकिन ।

अधूरा - सा प्रयोग

सिर्फ
प्रयोग करते हैं
जानने का
अधूरा - सा प्रयोग,
अपने ऊपर
गिरते हुए
रंगों से बचने की
कोशिश में
आदिम
छतरीयां तानते हैं,
जी हाँ
कभी - कभी
बहुत भरी पड़ता है
नीति - अनीति से
चिपके रहना,
अविकसित मनोकामनाओं के
भागीदार बनकर
शोरगुल भरे यातायात में
अपनी ही गाड़ी के
पहियों से बनी
रेखाओं को मिटते देखना,
स्वास से स्वास
और
देह से देह के
विछोह का
अनुभव !
अनावश्यक
तुम ऐसा मत करना
मैं तो सिर्फ जागा था
उन स्वप्नों की करवटों में
जहाँ
वृतियों का अस्तित्व भी
अनुपस्थित था
वहीँ
तुम्हे तो किन्ही
अधूरे प्रयोगों के साथ
गहरी
नींद को जानना
बाकी है अभी |

सोमवार, 6 फ़रवरी 2012

देह से देह को

अपने जन्म - सा 
निरुपाधिक ध्यान में 
इस ओर से
उस ओर तक 
वह महापथिक 
पानी से भरे 
थालों पर कदम रख
पार हो जाता है 
अक्षर पुष्प 
धारण कर 
गिटक जाता 
शमशान की अग्नि 
जानता
जीतता भी है 
हर रोज़ 
अपनी ही 
देह से देह को 
हराकर ।

कुछ संकेतों के साथ

कुछ संकेतों के साथ 
जान ही लिया 
उनहोंने 
अपने आप से 
अपरिचित रहने का अंतर 
विवशताओं की 
पदावलियों से परे जो 
आप से आप 
बारी - बारी दौहराया
नि:सृत प्रकाश - सा 
वाकई 
अब केवल 
प्रतीक्षा करनी है 
और करनी 
दोनों को 
प्रार्थनाएँ भी 
कुछ संकेतों के साथ ।

शनिवार, 4 फ़रवरी 2012

मैं अपने "मैं" से

तुम्हारी उपस्थिति 
कितने ही रहस्यों के 
उदघाटन की बात करती है 
अपनी ही 
पूर्वापेक्षाओं के 
विस्तार का दिव्य
अनुवाद भी 
जहाँ बाकी 
कुछ नहीं रहता 
सब कुछ उसी लय में, 
निश्चय ही 
धीरे - धीरे 
खत्म हो जाते हैं 
सारे अंतर 
विपरीत भाव 
टूटती तन्द्राओं के साथ 
उस आध
निर्विकल्प 
समाधी में रूपान्तरित 
तुम अपनी पूर्णता में 
और 
मैं अपने "मैं" से मुक्त 
यह
वह
तुम और मैं 
अब कहाँ के प्रश्न 
सब कुछ भूलकर 
उस में ही डूबने के गुर 
अक्सर
जहाँ मौन भी 
किसी आवर्तित 
बुलबुले सा हँसता है 
जो उसके मैं  और तुम में 
कभी 
कहीं नहीं था ।