शुक्रवार, 9 सितंबर 2011
रविवार, 4 सितंबर 2011
असंभव लगता
असंभव
लगता
कह पाना
यूँ मानो
अपने आप को
दोहराता हुआ
देह से भिन्न
कोई आस्वादन,
सत्य के
अनुकरण में
क्या इतना कुछ
काफी नहीं,
या फिर
इसका उल्टा
साल दर साल
किसी का
अनुयायी
बने रहना
शायद
असंभव ही |
शुक्रवार, 2 सितंबर 2011
सीख रहा हूँ
बादलों की
प्रदक्षिणा से
सीख रहा हूँ
द्वन्दरहित
अंतहीन
भिगोने की कला
क्या
इस अनुभूति में
अंतर्लीन होना
साक्षात्कार की
सहमती है
या फिर
थाह
किन्ही
कल - कल
स्मृतियों की |
प्रदक्षिणा से
सीख रहा हूँ
द्वन्दरहित
अंतहीन
भिगोने की कला
क्या
इस अनुभूति में
अंतर्लीन होना
साक्षात्कार की
सहमती है
या फिर
थाह
किन्ही
कल - कल
स्मृतियों की |
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