AMIT KALLA
मंगलवार, 6 अक्तूबर 2009
ओंठ छुईमुई के
दाँत
चमकीले दाँत
चबा डालते हैं
ओंठ
छुईमुई के
देखा आज
खुद
आँखों ने जिसे
बड़े पैमाने पर
बूंद - बूंद
झरते
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जानते थे गौतम..
अकाम अवस्था में
अदृश्य जल जानना चाहता
टूटा पंख
ए़क ही लय में
समय सहने का
पहुँचना कहाँ
झर जाने से पहले
लिखना सिखलाते हैं
एक मृत्यु ईश्वर
समय रहते
पृथ्वी
मेरी ही सुगंध बन
कोल्हू का बैल
कोकाबेली के फ़ूल 2
अपनी ही लय में
अदल-बदल कर अपनी बातें
ओंठ छुईमुई के
जैसे तैसे
कोकाबेली के फ़ूल 1
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