चुपके से
खबर लेता
शुभ लक्षणों को देख
अपनी ही
आँखों का स्पर्श करता है
क्या
आसान होगा
अनंत काल तक
अजनबी धुरी के
सहारे चलना
सीधे-सीधे देखना
कहीं कुछ भी
अनैतिक नहीं
शब्दों के धोकों के साथ
पकडे जाने का डर
आखिर
विधियों के सहारे
कैसे जिया जा सकता
और
कैसे पाया जा सकता
उस अकाम अवस्था में
महानिर्वाण
सोमवार, 12 अक्तूबर 2009
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Bhai Amit kalla.
जवाब देंहटाएंNameskar,
Aaj hi Aap ki payri si mulyamsi.mithi or nirbhik si kavita pdhi.
Sabhi kavita ek sendesh deti h.meri dua h Aap ka yeh sendesh dur-dur tek jaye.subhkamnyo k sath Aap ko kavityo k liye sadhu-bad.
NARESH MEHAN
बहुत अच्छा लिखा है . आजकल ऐसे सशक्त भाषा कम ही पढने को मिलती है. बहुत बहुत बधाई अमित. आप जोधपुर निवासी है क्या?
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