AMIT KALLA
शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2009
समय रहते
नीली
गहराई में
पानी
फूल सा खिलता है
पर्वतों के मोड़
सुन लेते
उसकी आवाज़
कभी-कभी
जगा देते
प्यासे को
समय रहते
1 टिप्पणी:
पी.सी.गोदियाल "परचेत"
9 अक्तूबर 2009 को 6:09 am बजे
बहुत ही सुन्दर छंद कल्ला जी
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जानते थे गौतम..
अकाम अवस्था में
अदृश्य जल जानना चाहता
टूटा पंख
ए़क ही लय में
समय सहने का
पहुँचना कहाँ
झर जाने से पहले
लिखना सिखलाते हैं
एक मृत्यु ईश्वर
समय रहते
पृथ्वी
मेरी ही सुगंध बन
कोल्हू का बैल
कोकाबेली के फ़ूल 2
अपनी ही लय में
अदल-बदल कर अपनी बातें
ओंठ छुईमुई के
जैसे तैसे
कोकाबेली के फ़ूल 1
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