लौटना है
उसे
अपने घर
बहते समय के
लौट जाने से
पहले
चखनी
बारिश जो है
बादलों के
झर जाने से
पहले
सुनना है
वह देस राग
स्वरों के
मौन!
हो जाने से
पहले
क्या संभव ?
प्रत्यभिज्ञान की
परिभाषित
संगती
कहीं कुछ
होने जाने से
पहले
शनिवार, 10 अक्तूबर 2009
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें