AMIT KALLA
रविवार, 11 अक्तूबर 2009
पहुँचना कहाँ
देखना
नियति है
आँखों की
लेकिन
पहचानने का
क्या
मसलन
चलना
नियति
पावों की
पहुँचना
कहाँ
1 टिप्पणी:
Unknown
5 जनवरी 2010 को 6:26 am बजे
boht sahi...jindgi jite sabhi hai ...par Jeevan Artharth ka kaya??
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जानते थे गौतम..
अकाम अवस्था में
अदृश्य जल जानना चाहता
टूटा पंख
ए़क ही लय में
समय सहने का
पहुँचना कहाँ
झर जाने से पहले
लिखना सिखलाते हैं
एक मृत्यु ईश्वर
समय रहते
पृथ्वी
मेरी ही सुगंध बन
कोल्हू का बैल
कोकाबेली के फ़ूल 2
अपनी ही लय में
अदल-बदल कर अपनी बातें
ओंठ छुईमुई के
जैसे तैसे
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