मंगलवार, 25 अगस्त 2009

कितना साफ़ ..

पिघलते अंधेरे के पार
गहराई चांदी की रेखा पर
टिके ख्वाब में
बची- खुची पीड़ा तक
या फ़िर
खाली कैनवास में
छिपे पहाडो पर
उगी घास ,

अटक जाता
जहाँ
सूर्य
कभी कभी
कितना साफ़ ।

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