गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011

वापस आऊंगा

तीर
शब्द
भोर के स्वप्न
धरती में समाई जल की बूंद
बीता बचपन
अन्तरिक्ष से टूटे किसी पिंड जैसा
आँख से बहा आँसूं
कुंएं में फेंके चंद  सिक्के
या फिर
गंगा में बही अस्थियों -सा
वापस आऊंगा

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें